(नागपत्री एक रहस्य-22)
भला क्या नामकरण करें इनका, जिनके कारण खुद हमारा नाम और अस्तित्व बना हुआ है, इनके पूर्व से ही अनेकों नाम है, और अनेकों रूप रह चुके हैं, अब भला कौन सा अलग से नामकरण किया जाएगा??
अनेकों लक्षणों से परिपूर्ण इन्हें सिर्फ लक्षणा के नाम से पुकारना चाहूंगी, मुझे पूर्व से ही आभास था कि अवश्य चंदा को विशेष सौभाग्य प्राप्त है, अपनी इच्छा अनुसार फल पाना और पूर्ण श्रद्धा के साथ मूल रूप को स्वीकार करना, वह भी बिना मन में कोई विचार लिए अवश्य ही फलदाई होता है।
तुम धन्य हो चंदा.. तुमने एक विशेष शक्ति का मूलाधार बनने का सौभाग्य प्राप्त किया, दिनकर जी आपका परिवार अवश्य ही किसी पितृकृपा से संरक्षित है,
आपके पितरों के आशीर्वाद और प्रार्थना आपके हर कार्य में सहयोगी बनते हैं, वरना यूं ही हर किसी को उस तिलस्मी चाबी के दर्शन नहीं होते ,कहते हुए पुजारी जी ने उस नाग पत्री पर लक्षणा अंकित कर चंदा के हाथ में थमा दिया।
तब पहली बार लक्षणा के इस धरा पर एक नई छवि और नाम के साथ पुकारा गया, अक्सर लोगों के लिए कोई ना कोई नया आश्चर्य प्रकट होते , जिसका वे कभी कोई जवाब ना पा, आकर सिर्फ कहानी किस्सों की तरह सावित्री देवी और चंदा को सुनाते, लक्षणा के आसपास बचपन में नाग और सर्पों की उपस्थिति सामान्य सी लगती थी।
सावित्री देवी को आज भी अच्छे से याद है , कि एक बार जब बगीचे में वह लक्षणा को छोड़ आई, और किसी काम की व्यस्तता में यह भूल गई कि लक्षणा धूप में ही बैठी खेल रही है, और जैसे ही याद आया, तुरंत लौट कर देखती है, लक्षणा पेड़ के नीचे बैठी हुई खेल रही थी, और दो विशाल नाग उसके ऊपर पेड़ से लटक कर छांव दे रहे हैं।
आश्चर्य... घोर आश्चर्य...और कृपा की छोटा बच्चा भयभीत भी ना हो, और छांव भी हो जाए, शायद इसलिए वे दोनों ही नाग पेड़ से झूले की तरह लटककर एक चुनर नुमा स्थिति प्रकट करते थे, जिससे लक्षणा को धूप ना लगे।
यह देख सावित्री देवी उस समय अपनी पोती की चिंता में भयभीत हो गई थी, क्योंकि चमत्कार हो या कुछ और,
सर्प प्रजाति का मनुष्य के पास दिखाई देना भय का कारण बन ही जाता है, और खासकर जब अपने ही पोती की बात हो, और उसने घबराकर सारी बातें दिनकर और अपने पति को बताई।
जिस बात को सुन दिनकर जी भी थोड़ा चिंतित हुए, लेकिन उनके पति ने मुस्कुराते हुए सिर्फ एक ही बात समझाई, कि जब महादेवी ने कुल प्रसाद खुद ही दिया है, तब फिर भला मन में चिंतन क्यों????
यदि कोई हानि की स्थिति नजर ना आए, तब फिर चिंता करना बिल्कुल व्यर्थ है, आप चिंता ना करें, नागों की छाया विरले मनुष्य को ही इतिहास में मिली है, इसलिए चिंतित होने से अच्छा आप महादेवी को धन्यवाद कहे,
और मेरे विचार से यदि थोड़ा समय निकलता है, तो अपने बहू बेटे को लेकर पुनः एक बार देवी दर्शन कर आना चाहिए, क्योंकि विधि अनुसार यदि कार्य या मन्नत पूर्ण हो जाए, तब हमें आम मनुष्यों की तरह देवताओं को भी धन्यवाद के तौर पर पुनः जाकर मिलने का प्रयास करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है।
सावित्री देवी को सच जान और मन में पोती की सुरक्षा की शंका भी लिए हुए अतिशीघ्र सब काम छोड़ मंदिर दर्शन हेतु निकले, और उन्हें भली-भांति याद है , कि बीच रास्ते में दो सांडों ने लड़ाई से कोहराम मचा रखा था, सारी सड़क दो टुकड़ों में बट गई थी,
लेकिन जैसे ही सावित्री देवी अपनी पोती को लेकर उसी स्थान पर पहुंची, जिसमें सावित्री देवी फ्रंट विंडो सीट पर लक्षणा के साथ बैठी थी, उसके देखते ही वे दोनों सांड घबराकर विपरीत दिशा में ऐसे भागे, जैसे उन्होंने अपने सामने कोई अतिशय शक्ति को देख लिया हो।
ऐसा अक्सर होता क्योंकि उसकी नीली आंखें और मुस्कुराता चेहरा देखकर हर मनुष्य ललाहित हो उठता, विवश हो जाता उसकी मुस्कुराहट का जवाब दे देने के लिए, लेकिन ठीक इसके विपरीत कोई भी पशु ना जाने क्यों उसके आसपास नहीं भटकता।
यहां तक कि सावित्री देवी के घर में जब लक्षणा का जन्म हुआ, उसके पूर्व से एक बिल्ली पाल रखी है, ताकि गोदाम में चूहों से होने वाली हानि से बचा जा सके, लेकिन लक्षणा के जन्म के पश्चात वह अप्रत्याशित तौर पर ना जाने खुद ही घर छोड़ कर चली गई , और तो और उसकी अनुपस्थिति में भी अब कोई भी दूसरा जीव अर्थात चूहे, किट इत्यादि भूले से भी उनके गोदाम या घर में नजर नहीं आते।
ना जाने क्यों इन सबके बावजूद सावित्री देवी का अचानक चिंता करना शायद उनका मोह ही था, उन्होंने जाकर जो पुजारी जी को सारी बातें बताई, तब उन्होंने खुद बच्ची को देख बड़ा प्यार किया,
और बोले चंदा देवी मां के चुनर की कृपा और उस चमत्कारी जल को गृहण करने के पश्चात जब स्वयं नाग शक्ति का अंत तुम्हारे घर प्रकट हुआ, तब फिर भला किस बात को लेकर चिंतित है।
सच बताओ, क्या यह बिल्कुल वह प्रतिकृति नहीं, जिसकी कल्पना अपने प्रथम पूजन के समय अपनी पुत्री के रूप में की थी?और यदि हां तो वह मिलने के पश्चात चिंता किस बात की, यह बात तो सभी जानते हैं कि जहां नाग शक्ति निवास करें, आस-पास कोई भी जीव जंतु फटक भी नहीं सकते,
और इसलिए लक्षणा में आंशिक रूप से उस शक्ति का अंश जिसे तुमने खुद ही वरदान में मांगा था, इसलिए चिंतित ना हो, जितना हो सके उसे लेकर भयभीत ना हो, क्योंकि उसकी सुरक्षा स्वयं ही उसके सेवक करते रहेंगे, इतना कहते हुए वे मौन हो गए।
लेकिन सावित्री देवी के मन में तब भी चिंता भला कहां समाप्त होने वाली थी, परंतु वह विवश थी पुजारी जी की बातें मानने के लिए, क्योंकि उनका प्रत्येक कथन लगभग सही होना, इसलिए वे आशीर्वाद लिए वहां से चले आए,
और बचपन से ही अनेकों आश्चर्यजनक घटनाएं लक्षणा की देखी गई, जिसमें एक बात को लेकर सभी परेशान थे, कि बेचारी लक्षणा को ना तो हाथी की सवारी का लाभ मिला और ना ही घुड़सवारी संभव हो सकी।
ना जाने क्यों लक्षणा को सामने देखते हुए हाथी रास्ता बदल देता, और घुड़सवारी की तो बात ही नहीं, क्योंकि लक्षणा के सामने कोई भी घोड़ा दो सेकंड से ज्यादा नहीं ठरहता, जैसे ही लक्षणा की नीली आंखों में झांक कर देखता ,सरपट वापसी की ओर दौड़ लगा लेता।
इसका कारण चंदा ने पुजारी जी से सुन तो चूकि थी, लेकिन अपनी पुत्री की उस अधूरी इच्छा कैसे पूर्ण हो, इस बात की चिंता उन्हें सता रही थी, और इस विषय में दिनकर जी ने बहुत प्रयास किया, लेकिन असफल रहे, आज पहली बार आचार्य चित्रसेन जी की कृपा से लक्षणा घुड़सवारी की इच्छा पूर्ण हो पाई।
क्रमशः....